नई दिल्ली: भारत ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश चीन को एक और जोर का झटका दिया है। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) की मीटिंग में भारत ने चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की हवा निकाल दी। बीआरआई प्रोजेक्ट के कारण दुनिया के कई देश चीन के कर्जजाल में फंसकर बर्बाद हो चुके हैं। भारत ने इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करने से साफ इन्कार कर दिया। एससीओ में शामिल देशों में केवल भारत ने ही इस प्रोजेक्ट का विरोध किया। बाकी देशों ने चीन के इस प्रोजेक्ट का समर्थन किया। यह मीटिंग वर्चुअली भारत में आयोजित की गई थी। इसमें भारत और चीन के अलावा रूस, पाकिस्तान, कजाकस्तान, किर्गीजस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान ने हिस्सा लिया। इस समिट की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की और इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और दूसरे नेताओं ने हिस्सा लिया। लेकिन भारत के अलावा किसी भी देश ने चीन के बीआरआई का विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखाई।
यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने बीआरआई का विरोध किया है। इससे पहले पिछले साल समरकंद घोषणापत्र में भी भारत ने इसका विरोध किया था। भारत ने हमेशा इस प्रोजेक्ट का विरोध किया है। उसका मानना है कि इसके तहत बन रहा चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है। यह कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से निकलता है। समरकंद घोषणापत्र में भी भारत को छोड़कर बाकी सभी देशों ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया था। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के कारण दुनिया के कई देश कर्ज के जाल में फंस गए हैं।
चीन के कर्ज में फंसे हैं कई देश
दुनिया के करीब एक दर्जन देश चीन के कर्ज में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। इन देशों पर अरबों डॉलर का कर्ज है और वे आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें पाकिस्तान, केन्या, जाम्बिया, लाओस और मंगोलिया शामिल हैं। इस देशों के विदेशी मुद्रा भंडार का अधिकांश हिस्सा चीन के कर्ज का ब्याज चुकाने में जा रहा है। हालत यह है कि उनके पास स्कूल चलाने, अपने लोगों को बिजली देने और पेट्रोल-डीजल के लिए भी पैसे नहीं हैं। इनमें से कई देश कंगाल होने के कगार पर पहुंच गए हैं। उनके पास कुछ ही महीने के इम्पोर्ट के लिए पैसा बचा है। चीन किसी का भी लोन माफ करने को तैयार नहीं है। साथ ही यह भी साफ नहीं है कि चीन ने इस देशों को किस शर्त पर और कितना लोन दिया है। सबकुछ छिपा हुआ है। इस वजह से दूसरे देश भी इन देशों की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
चीन के कर्ज के कारण कम से कम दो देश श्रीलंका और जाम्बिया पहले ही डिफॉल्ट कर चुके हैं। पाकिस्तान में टेक्सटाइल सेक्टर में काम करने वाले लाखों कामगारों को निकाला जा चुका है। इस देश पर भारी कर्ज है और विदेशी मुद्रा भंडार करीब-करीब सूख चुका है। उसके लिए देश में बिजली आपूर्ति बनाए रखना और मशीनों को चालू रखना भारी पड़ रहा है। अफ्रीकी देश केन्या में सरकार ने पैसे बचाने के लिए हजारों सिविल सर्विस वर्कर्स की सैलरी रोककर रखी है। राष्ट्रपति के चीफ इकनॉमिक एडवाइजर को ट्वीट करना पड़ा था कि 'सैलरी या डिफॉल्ट। चॉइस आपकी।'
कर्ज चुकाते-चुकाते निकला दम
श्रीलंका एक साल पहले ही डिफॉल्ट कर चुका है। वहां पांच लाख इंडस्ट्रियल जॉब्स खत्म हो चुके हैं। महंगाई की दर चरम पर और देश की आधी से अधिक आबादी गरीब हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि अगर चीन ने गरीब देशों को दिए गए लोन पर अपना रुख नरम नहीं किया तो कई और देश डिफॉल्ट हो जाएंगे। इनमें जाम्बिया भी शामिल है। इस देश ने बांध, रेलवे और रोड बनाने के लिए चीन से जमकर कर्ज ले रखा है। इससे देश की इकॉनमी में तेजी आई लेकिन अब उसे लोग का इंटरेस्ट चुकाना भारी पड़ रहा है। देश में हेल्थकेयर, सोशल सर्विसेज और सब्सिडी के लिए पैसा नहीं है।
पहले इस तरह के मामलों में अमेरिका, जापान और फ्रांस जैसे देश कर्ज माफ कर देते थे। लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं है। वह एक-एक पाई वसूलने में यकीन रखता है। यही वजह है कि चीन का लोन चुकाते-चुकाते कई देश बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं। चीन का तर्क है कि उसने मुसीबत के समय इन देशों की मदद की है। साथ ही उसका दावा है कि उसने 23 अफ्रीकी देशों का लोन माफ कर दिया है। हालांकि जानकारों का कहना है कि यह लोन दो दशक से भी अधिक पुराना था और यह उसके कुल लोन का महज पांच फीसदी है।
क्या है बीआरआई
बीआरआई एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। इसके जरिए चीन पूरी दुनिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है। वह दुनिया के गरीब देशों को कर्ज दे रहा है और फिर उनके संसाधनों पर कब्जा कर रहा है। अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक कई देश उसके कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। बीआरआई का असल मकसद अमेरिका की पकड़ को कमजोर करना है और भारत को चारों तरफ से घेरना है। वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ-साथ मध्य एशिया और यूरोपीय बाजारों तक अपनी जमीनी पहुंच बढ़ाना चाहता है। साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र तक भी दखल बढ़ाना चाहता है। इसके जरिए वह भारत पर दबाव बनाना चाहता है। लेकिन भारत ने उसकी इस साजिश में शामिल होने से दो टूक मना कर दिया।