खाली खेतों में कैसे मिला हरियाणा का 'हीरा' गुड़गांव, पढ़िए कहानी 'KP' की

Updated on 03-08-2023
नई दिल्ली: 7 साल पहले जो गुड़गांव, गुरुग्राम बन गया, आज वो जल रहा है, दंगे की आग ने इस खूबसूरत साइबर सिटी की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। गुरुग्राम के कई इलाकों में हिंसक झड़प की खबरें आ रही है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों की ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े मॉल्स, थीम पार्क वाला ये शहर आज हिंसा की वजह से विरान है। नूंह में हुई हिंसा कुछ ही घंटों में गुरुग्राम तक पहुंच गई। तमाम ऑफिस, कंपनियां, फैक्ट्री, मॉल, मार्केट , स्कूल-कॉलेज सब बंद कर दिए गए। कहते हैं कि इस शहर में कभी रात नहीं होती, लेकिन आज दिन के उजाले में भी वहां खामोशी है। गुरुग्राम की रफ्तार थमने से सरकार की आर्थिक सेहत बिगड़ने लगी है। हरियाणा के लिए गुरुग्राम कितना अहम है यह इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह शहर 70 फीसदी तक रेवेन्यू जेनरेट करता है। आज उसी गुड़गांव की कहानी जानते हैं। कैसे एक सुनसान शहर, जहां कुछ भी नहीं था, आज जगमगा रहा है।

​महाभारत से जुड़े हैं तार , गुरु को दिया था उपहार​

बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुग्राम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। धर्मराज युधिष्ठिर ने यह नगरी अपने गुरु द्रोणाचार्य को उपहार के तौर पर दी थी। इसी कारण इसका नाम गुरुग्राम रखा गया था। मान्यता है कि गुरु द्रोण ने यहां पांडवों को शिक्षा दी थी। इतना ही नहीं महान गुरु भक्त एकलव्य का गुड़गांव से गहरा संबंध है। इस स्थान पर ही गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा मांगा था। गुड़गांव ही वो जगह है जहां अर्जुन ने चिड़िया की आंख में निशाना लगाया था। महाभारत ही नहीं कई राजवंशों से इसका संबंध रहा है। यदुवंशी, राजपूत , मुगल और मराठों ने यहां शासन किया। साल 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस पर नियंत्रण हासिल कर लिया था। बिट्रिश शासन के दौरा में इसका नाम बदलकर गुड़गांव कर दिया था। 1858 में यह पंजाब प्रांत का हिस्सा बन गया था। साल 1979 में 5 तहसीलों को जोड़कर आधुनिक गुड़गांव जिला बनाया गया। साल 2016 में एक बार फिर से हरियाणा की सरकार ने उसका नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया ।

​कैसे शुरू हुई गुरुगांव के बसने की कहानी​

1970 के आखिरी दौर की बात है। डीएलएफ के केपी सिंह गुड़गांव के भविष्य का भांप गए थे। उन्हें पता था कि फ्यूचर इसी शहर में बसने वाला है। जब वहां कुछ भी नहीं था, केपी सिंह से दांव खेला, रिस्क उठाया और वहां निवेश करना शुरू किया। केपी सिंह ने किसानों से बात करना शुरू किया। किसानों को मनाने की उनकी कला काम कर गई और इसके साथ ही शुरू हो गया वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का काम।

​नाम बदला, रूप बदला​

साल 1979 में 5 तहसीलों को जोड़कर आधुनिक गुड़गांव जिला बनाया गया। साल 2016 में एक बार फिर से हरियाणा की सरकार ने उसका नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया । अगर कभी गुरुग्राम के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले आपके दिमाग में ऊंची-ऊंची इमारतें और बिज़नेस हब सामने आने लगता है। शानदार मॉल, ट्रेंडी रेस्टोरेंट, आकर्षक नाइटक्लब सबकी तस्वीरें नजर आने लगती है, लेकिन हमेशा से यह शहर ऐसा नहीं था। कभी यहां जंगल हुआ करते थे, सुनसान सड़कें रहती थी। दिल्ली से सटे होने के बावजूद डेवलपमेंट के नाम पर यहां कुछ नहीं था। इस शहर की तस्वीर बदलने का श्रेय जिस शख्स को जाता है, वो हैं DLF के मालिक केपी सिंह (KP Singh)

​फिर आया 1989 का वो दौर​

केपी सिंह ने पहल की, डीएलएफ के रेसिडेंशियल अपार्टमेंट, ऑफिस स्पेस बनाना शुरू किया। ये उस दौर की बात है, जब सूरज डूबने के बाद लोग वहां जाने तक से डरते थे। ऑटो , टैक्सी वाले गुरुग्राम-दिल्ली बॉर्डर से आगे जाने के लिए दोगुना किराया मांगते थे, लेकिन केपी सिंह समझ चुके थे कि दिल्ली के भीड़भाड़ से परेशान लोग गुड़गांव ही आएंगे। उन्होंने भविष्य का आंकलन कर लिया था। DLF के नक्शेकदम पर चलते हुए कई बिल्डर्स अब गुड़गांव पहुंचने लगे। घर तो बन गए, लेकिन खरीदार और रहने वाले वहां जाने को तैयार नहीं थे। केपी सिंह समझ गए कि जब तब कंपनियां वहां नहीं पहुंचेंगी, लोग नहीं आएंगे। साल 1989 में उन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक को भारत लाने का काम किया। भारत इलेक्ट्रिक ने गुड़गांव में पहला BPO सेंटर खोला। सिंह ने गुड़गांव में जनरल इलेक्ट्रिक को आउटसोर्सिंग कंपनियों के लिए अपना पायलट ऑफिस खोलने के लिए राजी किया। इसी के साथ गुड़गांव में कंपनियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। कम किराए, ओपन स्पेस, पास में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट , राजधानी दिल्ली से कनेक्टिविटी ने कंपनियों को गुड़गांव की ओर खींचना शुरू कर दिया।

कौन है केपी सिंह

केपी सिंह वो शख्स हैं, जिन्होंने सुनसान, विरान बडे खेतों को हरियाणा का हीरा बना दिया। अगर केपी ने उस वक्त वो रिस्क नहीं उटाया होता तो शायद आधुनिकता से भरा यह शहर नहीं बस पाता। केपी न उस वक्त भविष्य को भांप लिया और दिल्ली से सटे हरियाणा के खाली खेतों में प्रदेश का 'हीरा' बना दिया। केपी सिंह का पूरा नाम कुशल पाल सिंह है। साल 1961 में उन्होंने सेना छोड़कर अपने ससुर की कंपनी DFL को ज्वाइन कर दिया। साल 1946 में उनके ससुर रधुवेंद्र सिंह ने इस कंपनी की नींव रखी थी। साल 2020 में केपी सिंह ने डीएलएफ के चेयरमैन की कुर्सी छोड़ दी। अब उनके बेटे कमान संभालते है।

​आज हरियाणा को 70% रेवन्यू देने वाला शहर

आज इस शहर में दुनियाभर की बड़ी-बड़ी कंपनियों का ऑफिस है । गूगल, माइक्रोसॉफिट, नेस्ले, अमेरिकन एक्सप्रेस, टाटा, हीरो, IBM,ब्रिटिश एयरवेज समेत दुनियाभर की तमाम बड़ी -बड़ी कंपनियों के दफ्तर हैं। गुरुग्राम, सोहना, मानेसर , रिवाड़ी बिजनेस सेंटर हैं। हर रोज यहां लाखों लोग नौकरी के लिए आते-जाते हैं। यह शहर सरकार के खजाने में बड़ा रेवेन्यू भरने का काम करता है। लेकिन हिंसा की वजह से सरकार को नुकसान हो रहा है। ऑफिस, फैक्टी, कंपनियां सब बंद है।



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